शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

Dodiya rajput

                       शश                                                                        

डोडिया राजपूत राजवंश  की ऐतिहासिक जानकारी।

                                                                                       

        जय माँ कुलदेवी हिंगलाज माता 
                                                       
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(1)प्रथम कुलदेवी - हिंगलाज माता (नवमी की पुजा)
    
(2)दुसरी देवी      - नागनेची माता (आठम की पुजा)

(3)तिसरी कुलदेवी - चामुंडा माता ( विशेष मध्यप्रदेश
     में चामुंडा माता डोडिया की कुलदेवी के रूप में
     पुजनीय कुछ अन्य क्षेत्र मे भी डोडिया की  पुजनीय
     देवी है । )
   
(4)जन्म स्थली - आबु अग्निकुण्ड (केल के डोडे से)

(5)निकास - मुल्तान नगर (दिपंग देव की राजधानी)

(6)वंश - अग्निवंश

(7)डोडिया राजपूत राजवंश की उत्पती -
     (क्षत्रिय वंश की पुन स्थापना के लिए डाली गई
     हवन सामग्री के आबु अग्निकुण्ड से निकले  छिटे
     असुरी शक्ति को रोकने के लिए रोपे गये  केल के
     पेड पर लगे। जिसके फलस्वरूप आदिपुरूष दिपंग        
     डोडिया का केल के डोडे पुष्पकली से जन्म हुआ ।    
     जिसका वंश डोडिया राजपूत कहलाया)

(8)शाखा -स्वतंत्र डोडिया राजपूत राजवंश
      ⚫डोडिया राजपूत किसी ओर राजपूत राजवंश
           की शाखा नही है ।
      ⚫डोडिया राजपूत स्वतंत्र राजपुत है ।
           
(9)गंगावत डोडिया,पुरावत डोडिया,इन्द्रभाणोत डोडिया
     लगाने का कारण -दो भाई के नाम पर गंगावत ओर
     पुरावत डोडिया कहलाने लगे मध्यप्रदेश मे गंगा सिंह
     जी डोडिया के नाम पर गंगावत डोडिया कहलाये ,  
     गंगा सिंह जी डोडिया के वंशज।
     मध्यप्रदेश मे पुर सिंह जी डोडिया के नाम पर पुरावत      
     डोडिया कहलाये पुर सिंह जी डोडिया के वंशज ।
     इन्द्रभाणोत डोडिया लावा (सरदारगढ़ ) ठिकाने के
     इन्द्रभाण सिंह जी डोडिया  के वंशज इन्द्रभाणोत
     डोडिया कहलाये । डोडिया राजपूत के शासक का
     नाम डोडिया के साथ कुछ क्षैत्र मे शासक का नाम
     भी लगाते है । (डोडिया की अलग शाखा नही है,
     डोडिया राजपूत शासक का नाम डोडिया के साथ
     जोडा गया है ,शासक का नाम ।जैसे गंगावत डोडिया,
     पुरावत डोडिया,इन्द्रभाणोत डोडिया
     (आशावत डोडिया मेसावत डोडिया यह भी युज
      होता है मध्यप्रदेश क्षेत्र मे )
     अधिकांश क्षेत्र मे केवल डोडिया शब्द युज होता  है ।

 (10)गोत्र-शांडिल्य (दिपंग डोडिया की उत्पती के
        समय हवन कार्य मे सहयोगी व मार्गदर्शक गुरू     
        शांडिल्य ऋषि । अग्निकुण्ड के चारो ओर
        केल के पेड रोपकर हवन कार्य का असुरी शक्ति
        से रक्षा कवच  बनाने वाले गुरू शांडिल्य ऋषि )

(11) डोडिया राजवंश के कुलगुरु - शांडिल्य ऋषि

(12)घोड़ा - सावकरण

(13)नगारो - बिजुवर

(14)तोप - महाकाली

(15)बन्दूक - बागवानी

(16)हाथी - ऐरावत

(17) नाई  -   (सोलकी )सोलंकी

(18)ढोल - राजवीदार

(19)नदी - सरयू

(20)सती-रम्भादेवी

(20)तालाब - भोडेलाव

(21)कंवर - कलेशजी

(22)धुनी - सागनाड़ा हिमालय पर्वत पर

(23)गणेश - गुणबाय

(24)भेरू - काला

(25)तलवार -रणबकी/रणजीत

(26)ढोली - दात्यो

(27)ढोल के डाको-कडषाण

(28)चुड़ो -हाथी

(29)सती - रंभादेवी

(29)प्रथम राज्य- गढ़ गिरनार

(30)डोडिया वंश के आदिपुरूष व प्रथम पुरूष - दिपंग देव
        ( केल के डोडे पुष्पकली से उत्पन्न होने वाले पुरुष     
         दिपंग देव डोडिया )

(31)डोडिया वंश का वृक्ष - केल
       नोट-डोडिया वंश द्वारा केले का खाना निषेध है ।
       क्योंकि डोडिया वंश की उत्पत्ति केल से हुई है ।
       (जिनको इस सम्बंध मे जानकारी हे वह केले को
       नही खाते खास हमारे परिवार के बड़े व्यक्ति )
       वर्तमान मे कुछ परिवार को छोडकर लगभग
       हर क्षेत्र का डोडिया परिवार केला खाता है ।
       राजस्थान मे आज भी कुछ परिवार है जिनका
       मुखिया केला नही खाता है ।

(32) डोडिया वंश की नख - इन्द्रभाणोत

(33)हिंगलाज माता जी की प्रसादी पूजा - चावल,
        लापसी की मिट्टी पुजा नवमी को

(34)नागनेची माता की पूजा- धुप,दिप करके आठम को

(35) डोडिया वंश को बेचरा माता द्वारा
          प्रदान शस्त्र - तलवार

(36)शार्दुलगढ गुजरात  के राव जसकरण डोडिया
        द्वारा मेवाड के महाराणा लक्ष्मण को चित्तोड     
        (रावलगढ़) मे प्रदान चमत्कारिक शस्त्र -तलवार
        (वह तलवार आज भी मेवाड की सांस्कृतिक
        धरोहर है ।तलवार के प्रभाव से महाराणा हम्मिर
         सिंह ने चित्तोड राज्य पुनः विजित किया ।
        उसी तलवार से महाराणा प्रताप ने मुगलो से
        संघर्ष किया ओर विजय प्राप्त की ।)

(37)कुल देवता - समुन्द्र देव
       डोडिया वंश के आदिपुरूष दिपंग देव- हिंगलाज
       माता ओर समुद्र की पुजा करते थे ।
       दिपंग की राजधानी मुल्तान थी ।
       (वर्तमान मे भेरू जी को कुलदेवता के रूप मे
       पुजा जाता है, अधिकांश क्षेत्र मे )

  
        (38)दिपंग की राजधानी मुल्तान दिपंग के वंशज
       पदम सिंह डोडिया  के आधिपत्य से मुल्तान छिन
       जाने के बाद गुजरात -काठियावाड़ मे गढ़ गिरनार,
       जेतगढ़ तथा शार्दुलगढ डोडिया वंश की राजधानी
       रही । शार्दुलगढ डोडिया वंश की प्रमुख राजधानी
       रही ।

(39)महाराणा जगत सिंह द्वितीय  (1734 से 1751ई,)
       ने जयसिंह डोडिया के प्रपौत्र सरदार सिह डोडिया
       को लावा ठिकाने की जागीर प्रदान की,उसने लावे
       मे दुर्ग का निर्माण करवाकर उसका नाम सरदारगढ़
       रखा ।

(40)मेंवाड की रक्षा हेतु डोडिया परिवार की 17
       पिडिया रणक्षेत्र मे शहीद हुई ।

(41)महाराणा सज्जन सिंह के शासनकाल
     (1874 से 1884ई,)महाराणा सज्जन सिंह
     ने ठाकुर मनोहर सिंह की कार्यकुशलता व
     योग्यता से प्रसन्न होकर ठाकुर मनोहर सिंह
     डोडिया को मेंवाड की प्रथम श्रेणी का सरदार
     घोषित किया ।

(42)महाराणा लाखा ने ठाकुर धवल सिंह डोडिया
        को मेंवाड मे आमंत्रित कर रतनगढ़ नन्दराय
       ओर मसूदा सहित पांच लाख की जागीर प्रदान
       कर 1387 ई.मे मेंवाड का सामंत बनाया ।

                                                                            


➡प्रथम कुलदेवी माँ हिंगलाज का ब्रहमणी अवतार है।
इसलिए इनके शराब मांस खाना पिना उनका अपमान
है ।विधि विधान से अलग है ।

                                                                            

➡दुसरी माता नागनेची - यह माता बदनोर महाराजा
राव सांडोजी डोडिया जोधपुर महाराजा के यहा शादी
करने गये बारात वापस आ रही थी ।
जोधपुर से बदनोर आते समय रास्ते मे रात हो गई ।
रात्री मे माता नागनेची पालकी मे आकर बैठ गई ।
शुभह देखा की पालकी मे वजन ज्यादा है ।
पालकी के अन्दर देखा तो अन्दर देवी बेठी है।
उनसे पुछा हमारे पहले से देवी है ।
माता ने जबाव दिया मे भी रहुंगी तब से माता
नागनेची पालने आयी ।
नागनेची माता राठोड़ वंश की कुलदेवी है ।
लेकिन नागनेची माता पालने आई तब से हिंगलाज
माता के साथ डोडिया वंश की पुजनीय देवी बन गई ।
                                                                           

➡चित्तौड पर अकबर की चढ़ाई 1567 ई. के दौरान
 मेंवाड के सरदारो ने भाण के पुत्र राव सांडोजी डोडिया
ओर रावत साहिबखान के माध्यम से संधिवार्ता की जो
असफल रही ,।जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो सांडोजी डोडिया
गम्भीरी नदी के पश्चिमी तट पर शाही सेना से बड़ी
बहादुरी से लड़कर मारा गया । सांडोजी डोडिया की
छतरी आज भी चित्तौड गम्भीरी नदी के किनारे पश्चिमी दिशा मे है

                                                                          

➡सांडोजी डोडिया का उत्तराधिकारी भीम सिंह
डोडिया प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध मे प्रताप के प्रमुख
सहयोगी के रूप मे मानसिंह के हाथी को मारकर
वीरगति को प्राप्त हुआ ।

                                                                         
     
      उम्मेदगढ़ से सरदारगढ़ तक सुक्ष्म वंशावली
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   ⚫कालु सिंह जी मालवा (मध्यप्रदेश )
       👉पिपलोदा
       👉सुखेडा
       👉मन्डावल
       👉चांपानेर
       👉आशावली
       👉गुदरखेडा
       👉चण्डाल
       👉उणी,,इत्यादि

                                                                          
 
   ⚫धवल सिंह डोडिया मेंवाड (राजस्थान)
        बदनोर  , आडावाल , मसुदा
        20 लाख का पट्टा संवत 1444 की साल
        मे पल्ड गांव खाली हुए। उन गांव को बागोल
        12 गांव की जागीर दि गई यह संवत 1684
        तक चला । पल्ड महाराणा अमर सिंह जी ने गांव
        खाली कर दिया । डोडिया राजपूत की बागोल
        जागीर से गये हुए डोडिया राजपूत  के गांवो
        के नाम -  बागोल का मुख्य ठाकुर वंश बागोल
        जागीर के कोटेला गांव मे बसता है ।
        बागोल मे डोडिया का आज भी रावला चोरा है ।
        बागोल के डोडिया राजपूत  परिवार से गये
        हुऐ डोडिया राजपूत के गांव के नाम -
        👉रठाणा
        👉टोकरा
        👉आटून
        👉हम्मिरगढ़
        👉नारलाई
        👉खोबारागुडा
        👉जैतान (जैतारण)
        👉देलवाडीया
        👉डोडिया का खेड़ा
        👉नरदास का गुड़ा
        👉शार्दुल
        👉सापोल
        👉कमलोद
        👉सोडार
        👉जालोड़ा
        👉गच्छी पुरा
       
                                                                           
 (ग्रामीण मान्यता रठाना )
रठाणा मे प्रवेश इन्द्र सिंह जी के पुत्र अमर सिंह जी
को पट्टा मिला अमर सिंह जी के दो पुत्र हुए ।
पदम सिंह जी डोडिया ओर पृथ्वी सिंह जी डोडिया
पदम सिंह जी की शादी डबोक देवड़ा गोपाल
सिंह जी की लड़की से हुआ ।
पृथ्वी सिंह जी  डोडिया शादी सोलंकीयो का गुड़ा
उकार सिंह जी की लड़की से हुआ । इनका
भाइपा रूपनगर है ।पृथ्वी सिंह जी डोडिया
को वांगटो की खेड़ी का पट्टा मिला ।

                                                                           

ढिकाणी-जागीर  डोडिया वंश की जागीर है।

                                                                           
Jashwant singh dodiya 
Thikana-sardargarah 
Bagol-jaageer 
Village-kotela post-bagol
Tehsil- nathdwara 
District rajsamand 
State-Rajasthan 313301
Mo. 9950555091